मंगल पाण्डेय का जीवन परिचय एवम इतिहास | Mangal pandey biography and history in hindi

  1. पूरा नाम--   मंगल पाण्डेय
  2. जन्म-- 19 जुलाई 1827
  3. जन्म स्थान-- नगवा, बल्लिया जिला, उत्तर प्रदेश भारत
  4. जाति-- हिन्दू
  5. म्रत्यु-- 8 अप्रैल 1857 को फांसी पर लटकाए गए

आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले क्रांतिकारी मंगल पांडे एक साधारण से ब्राह्मण परिवार में 10 जुलाई 1827 को बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था. उनके पिताजी का नाम दिवाकर पांडे था और माता जी का नाम अभय रानी था. मंगल पांडे शारीरिक रूप से काफी स्वस्थ और बहादुर थे.वह एक अच्छे सैनिक के गुण और गंभीरता उनमें थी.

उन्होंने जो क्रांति की ज्वाला जलाई थी वह ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को पूरी तरह से हिला कर रख दिया था. ईस्ट इंडिया कंपनी जो कि भारत में व्यापार की नियत दिखाते हुए  आई थी. उसी ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब भारत को अपना गुलाम बना लिया तो लंदन में बैठे उनके आकाओं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि 1 दिन मंगल पांडे रूपी बवंडर उनके पूरे अस्तित्व को हिला कर रख देगी. और मंगल पांडे द्वारा छेड़ी गई क्रांति भारत के इतिहास की आजादी की पहली लड़ाई के रूप में जानी जाएगी. मंगल पांडे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सेना में सन 1849 में शामिल हुए और वे बैरकपुर की सेना छावनी में बंगाल नेटिव इन्फेंट्री (BNI) की 34वी रेजीमेंट में पैदल सेना के सिपाही पद पर रहे.

ईस्ट इंडिया कंपनी की स्वार्थी नीति के कारण अंग्रेजों के प्रति मंगल पांडे को पहले ही से नफरत थी. जब साइना की बंगाल इकाई में ' एनफील्ड p -53 ' राइफल में नया कारतूस का इस्तेमाल किया जाने लगा. इस कारतूस को मुंह से खोलकर बंदूक में डालना पड़ता था. सेनाओं के बीच ऐसी खबर फैल गई थी कि इस कारतूस को बनाने में गाय और सुअर का चर्बी का इस्तेमाल होता है. यह खबर हिंदू और मुसलमान दोनों संप्रदाय के लिए गंभीर और धार्मिक विषय था. और इसी खबर से हिंदू और मुसलमान दोनों सेनाओं में अंग्रेजो के खिलाफ आक्रोश उत्पन्न हो गया.

और जब यह कारतूस 9 फरवरी 1857 को देसी पैदल सेना को दिया गया. तब मंगल पांडे मैं उसे लेने से इनकार करते हुए विद्रोह (Indian rebellion of 1857) जता दिया. फेस बात से अंग्रेजी अफसर बहुत ज्यादा गुस्सा हो गए और मंगल पांडे से उनके हथियार छीन लेने और वर्दी उतरवा लेने का आदेश पारित कर दिया. इस आदेश को मानने से मंगल पांडे ने मना कर दिया. और मंगल पांडे से हथियार छीनने आगे बढ़ने वाले अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन पर आक्रमण करके उसे मौत की नींद सुला दिया. इतना ही नहीं मंगल पांडे के रास्ते में आए दूसरे एक और अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट  बॉब को भी मौत के घाट उतार दिया.

और इस प्रकार उन्होंने  29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का डंका बजा दिया. इसीलिए क्रांतिकारी मंगल पांडे को आजादी की लड़ाई का अग्रदूत भी बोला जाता है. भारत के इतिहास में इस घटना का नाम '1857 का गदर ' दिया गया.

अंग्रेज सिपाही ने इस घटना के बाद मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लिया और उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा किया गया और 6 अप्रैल 1857 को उनको फांसी की सजा सुनाई गई. कोर्ट के आदेश के अनुसार उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी पर चढ़ाना था,लेकिन अंग्रेजों द्वारा 10 दिन पहले यानी 8 अप्रैल सन 1857 को ही मंगल पांडे को फांसी पर चढ़ा दिया गया.

मंगल पांडे के द्वारा छेड़ा गया यह विद्रोह भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में माना जाता है. इस विद्रोह में ना केवल सैनिक बल्कि राजा रजवाड़े, किसान , मजदूर एवं अन्य सभी समान लोग भी शामिल हुए थे. इस विद्रोह के कारण भारत पर राज करने का ब्रिटिश सरकार का सपना कमजोर होता दिखाई पड़ने लगा. क्रांतिकारी मंगल पांडे भारत के आजादी के ऐसे क्रांतिकारी थे,जिनको फांसी देने के नाम से गर्दन झुका कर जल्लादों ने फांसी देने से इंकार कर दिया था.

उन दिनों अंग्रेजों को फिरंगी नाम से जाना चाहता था और सबसे पहले मंगल पांडे ने ही  "मारो फिरंगी को" का नारा दिया था