Lokmanya Bal Gangadhar Tilak  history,bio,essay in hindi

बाल गंगाधर तिलक को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के जनक के रूप में माना जाता है.  बाल गंगाधर तिलक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के पहले लीडर थे. बाल गंगाधर तिलक बहुत ही गुणी थे. बाल गंगाधर तिलक एक शिक्षक, वकील, सामाजिक कार्यकर्त्ता, स्वतंत्रता संग्रामी, नेशनल लीडर थे. वे इतिहास, संस्कृत, खगोलशास्त्र एवं गणित में महारथ भारत हासिल करी थी. लोगों को बाल गंगाधर तिलक के प्रति बहुत स्नेह था. और लोग उन्हें स्नेह पूर्वक "लोकमान्य" कहकर संबोधित करते थे. "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे पाकर रहेंगे" का नारा भी उन्होंने ही स्वतंत्रता के समय दिया था. बाल गंगाधर तिलक महात्मा गांधी के विचारों से पूरी तरह से सहमत नहीं थे. तिलक का मानना था कि अहिंसा सत्याग्रह पूरी तरह से मानना सही नहीं है. जरूरत पड़ने पर हिंसा का उपयोग भी करना पड़ता है..



लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जीवन परिचय , Lokmanya Bal Gangadhar Tilak biography, history, essay in hindi

बाल गंगाधर तिलक [जन्म, शिक्षा एवं परिवार]

1.        पूरा नाम-- केशव गंगाधर तिलक

2.        जन्म-- 23 जुलाई 1856

3.        जन्म स्थान-- रत्नागिरी, महाराष्ट्र

4.        माता – पिता-- पार्वती बाई गंगाधर, गंगाधर रामचंद्र तिलक

5.        मृत्यु-- 1 अगस्त 1920 मुंबई

6.        पत्नी-- सत्यभामा (1871)

7.        राजनैतिक पार्टी-- इंडियन नेशनल कांग्रेस

ये भी पढ़ें : क्रांतिकारी मंगल पांडे को नमन, जाने मंगल पांडे का जीवन परिचय

बाल गंगाधर तिलक जी का जन्म चित्पावन ब्राह्मण  परिवार में हुआ था. उनके पिता गंगाधर तिलक संस्कृत के शिक्षक थे.  बाल गंगाधर तिलक बचपन से ही पढ़ने में बहुत होशियार थे. उनका गणित बहुत ही अच्छा था. तिलक के 10 वर्ष के रहते हैं उनके पिता रत्नागिरी से पुणे आ गए थे. यहां पर उन्होंने एंग्लो-वर्नाकुलर स्कूल में नामांकन करवाया और शिक्षा पूर्ण किया. पुणे आए हुए कुछ ही दिन हुए थे कि उन्होंने अपने माता जी को भी खो दिया. 16 साल की उम्र होते होते बाल गंगाधर तिलक  के सर से पिता का भी साया उठ गया.

तिलक अपने मैट्रिक की पढ़ाई के दौरान ही 10 साल की लड़की तापिबाई से शादी कर ली थी. उसी  लड़की का नाम बाद में सत्यभामा हो गया. मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद तिलक  ने डेक्कन कॉलेज में नामांकन करवा लिया. और यहीं से उन्होंने b.a की फर्स्ट क्लास की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद भी बाल गंगाधर तिलक ने पढ़ाई जारी रखते हुए  एलएलबी की डिग्री हासिल किया.

बाल गंगाधर तिलक का  करियर [Bal Gangadhar Tilak career] 

रिजर्वेशन की डिग्री लेने के बाद तिलक ने  पुणे में ही एक प्राइवेट स्कूल में गणित के टीचर के रूप में  पढ़ाने लगे. कुछ समय बाद ही  उन्होंने  स्कूल को छोड़ दिया और पत्रकार बन गए. देश में चल रहे गतिविधि से इस वक्त बाल गंगाधर तिलक बहुत ही ज्यादा आहत थे.  इसके लिए आवाज उठाना चाहते हैं.

बाल गंगाधर तिलक पश्चिमी शिक्षा के घोर विरोधी थे. वे मानते थे कि पश्चिमी शिक्षा के द्वारा भारतीय विद्यार्थियों को नीचा दिखाने का काम किया  जाता है. और भारत की संस्कृति को गलत ढंग से देखाया जाता है.

भारतीय शिक्षा पद्धति को सुधारने के लिए उन्होंने अपने मित्र के साथ मिलकर  ‘डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी’  का निर्माण किया. इसके निर्माण करने के अगले साल ही बाल गंगाधर तिलक ने  दो समाचार पत्रों का भी निर्माण प्रारंभ कर दिया. जिसमें से एक समाचार पत्र का नाम  ‘केसरी’  था जो मराठी में था और साप्ताहिक था. और दूसरे समाचार पत्र का नाम ‘मह्रात्ता’ था,जो अंग्रेजी का साप्ताहिक समाचार पत्र था.

कुछ समय में देखते ही देखते दोनों समाचार पत्र काफी लोकप्रिय हो गए. इन दोनों समाचार पत्रों में गंगाधर तिलक ज्यादातर भारत की दुर्दशा के बारे में ही लिखा करते थे. वे भारतीय लोगों के कष्टों को और दुर्दशा के वास्तविक तस्वीर को इस समाचार पत्र में छापा करते थे.

बाल गंगाधर तिलक जी सभी को बोला करते थे कि आगे आकर अपने हक के लिए लड़ो. भारतीय लोगों को प्रेरित करने के लिए बाल गंगाधर तिलक उग्र भाषा का उपयोग भी किया करते थे.

बाल गंगाधर तिलक का  राजनैतिक सफर [Bal Gangadhar Tilak political career] 

बाल गंगाधर तिलक ने 1890 में अंग्रेजो के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए. बाल गंगाधर तिलक को  महात्मा गांधी से पहले ही अंग्रेज भारतीय नेता मानते थे. बाल गंगाधर तिलक  पुणे मुंसीपाल एवं बम्बई विधान मंडल  के सदस्य पद पर भी रहे. तिलक एक महान समाज सुधारक के रूप में जाने जाते थे. बाल गंगाधर तिलक नहीं बाल विवाह का विरोध किया. और उन्होंने ही विधवा पुनर्विवाह का समर्थन भी किया. 1897 में तिलक पर एक भाषण के  द्वारा अशांति फैलाने और सरकार के विरुद्ध बोलने के लिए चार्जशीट फाइल कर दी गई. जिसके बाद तिलक को जेल भी जाना पड़ा. और  वे डेढ़ साल बाद 1898 में जेल से बाहर निकले.

ब्रिटिश सरकार उन्हें  ‘भारतीय अशांति के पिता’ कह कर संबोधित किया करता था. जेल से आने के बाद बाल गंगाधर तिलक ने स्वदेशी आंदोलन प्रारंभ कर दिया. वे अपनी बात समाचार पत्रों और अपने  भाषण के द्वारा महाराष्ट्र के गांव-गांव तक और जन जन तक पहुंचाने का काम क्या करते थे. स्वदेशी आंदोलन के दौरान वे लोगों को विदेशी सामानों का बहिष्कार करने के लिए कहा करते थे. इसके लिए उन्होंने अपने घर के सामने एक स्वदेशी मार्केट भी बना रखा था. और लोगों को इससे जुड़ने के लिए कहते थे.  इस समय कांग्रेस पार्टी के अंदर गर्मा गर्मी बढ़ने और विचारों  के मेल नहीं खाने की वजह से  पार्टी  पार्टी में दो गुट बन गए. नरमपंथी और  गरमपंथी. गरम पंथी को बाल गंगाधर तिलक द्वारा चलाया जाने लगा जबकि नरमपंथी को गोपाल कृष्ण के द्वारा. दोनों गुट एक-दूसरे के विरोधी थे.परंतु दोनों का उद्देश्य एक ही था.भारत की आजादी.बाल गंगाधर तिलक बंगाल के बिपिन चन्द्र पाल एवं पंजाब के लाला लाजपत राय का  समर्थक हो गए थे. और यहीं से तीनों को ‘लाल-बाल-पाल’  नाम से  जाना जाने लगा.


1909 में बाल गंगाधर तिलक ने अपने समाचार पत्र केसरी में तुरंत स्वराज की बात कही. और इसके बाद भी बाल गंगाधर तिलक पर राजद्रोह का आरोप लग गया. और उनको 6 साल  का कारावास हो गया. और उनको बर्मा भेजा गया. जहां पर उन्होंने जेल में बहुत सारी किताबें पढ़ी. और इसके साथ ही उन्होंने  ‘गीता का रहस्य’  पुस्तक भी लिखा.बाल गंगाधर तिलक 8 जून 1916 को  जेल से निकले से निकलने के बाद  उन्होंने 1916 कांग्रेस पार्टी  ज्वाइन कर लिया. अब वे कांग्रेस के दोनों दलों को जोड़ने की कोशिश करने लगे. इसके लिए उन्होंने महात्मा गांधी को भी बहुत समझाया कि वह पूरी तरह से अहिंसा को सपोर्ट ना करें. बल्कि स्वराज के बारे में सोचे. लेकिन अंत में उनकी सारी कोशिशें बेकार हो गई.

और इसके बाद उन्होंने अपनी  स्वयं की पार्टी ‘होम रुल लीग’  बना लिया. उसके बाद बाल गंगाधर तिलक संपूर्ण देश में भ्रमण करते हुए सभी को स्वराज के आन्दोलन से जोड़ने की कोशिश करने लगे.


बाल गंगाधर तिलक की  रचना [Bal Gangadhar Tilak books] 

ओरियन –-  1893

दी आर्कटिक होम इन दी वेद –- 1903 इस्वी 

गीता रहस्य –-  1915

बाल गंगाधर तिलक की  मृत्यु [Bal Gangadhar Tilak death] 

भारत माता को स्वतंत्र करने की लड़ाई में बाल गंगाधर तिलक संपूर्ण जीवन कार्यरत रहे.1 अगस्त 1920 को  मुंबई में उनकी अचानक मृत्यु हो गई.

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने स्वराज प्राप्ति के लिए अपने जीवन में  बहुत ही महान कार्य किए. स्वतंत्रता संग्राम में  अतुलनीय योगदान के लिए उनको हमेशा याद किया जाता है और याद किया जाता रहेगा.