आप जैसा कर्म करेंगे आपको वैसा फल मिलेगा यह तो आपने सुना ही होगा और कर्मों का भोग करना निश्चित है. इस कहानी में आप देखेंगे की व्यक्ति कितना भी इतरा क्यों ना ले उसे कर्म सही जगह पर लाकर पटक देता है. जन्म मृत्यु से पढ़े होता है कर्मों का फल. जब तक आपके कर्मों का पूरा हिसाब किताब नहीं हो जाता तब तक यह फल आपका पीछा नहीं छोड़ता है. अब तय आपको करना है कि आप पाप के भागी बनना चाहते हो या सदाचार का.


कर्मों का भोग निश्चित होता है

एक समय की बात है एक गुरु अपने शिष्यों के साथ तीर्थ यात्रा करने के लिए जा रहे थे. कुछ दिन और चलने के बाद सभी को थकान महसूस होने लगी. जिस कारण से हुए बीच जंगल में ही रुक गए. परंतु कुछ देर बाद गुरु को कुछ आवाजें सुनाई दी. जब गुरु ने बड़े ही ध्यान से उस आवाज को सुना तो उनको लगा कि कुछ लोग जोर जोर से रो रहे हैं. 

उन्होंने अपने शिष्य को कहा. शिष्यों सुनो,यह आवाज किधर से आ रही है? सभी से परेशान होकर एक दूसरे का मुंह देखने लगे क्योंकि उनको कोई आवाज सुनाई ही नहीं दे रहा था. परंतु शिष्यों ने गुरु के आदेश के अनुसार कुछ दूरी पर आकर देखा. फिर गुरु ने एक गहरे कुएं में झांक कर देखा. केवल ग्रुप को ही उस गहरे कुएं में कुछ लोगों के रोने की आवाज सुनाई दे रहा था. गुरु ने जब उस अंधेरे कुएं में झांक कर देखा तो वहां पर 5 लोग बहुत ही बुरी दुर्दशा में बिलक बिलक कर रोते हुए दिखाई दिए. परंतु अभी भी शिष्यों को कोई आवाज ना तो सुनाई दे रही थी और ना ही कुछ दिखाई दे रहा था.

तब गुरु जी ने कुल 5 लोगों को मुस्कुराते हुए देखा और उनसे पूछा - भाई तुम किन कर्मों का भोग भोग रहे हो. तब वे पांच और जोर-जोर से बिलक बिलक कर रोने लगे.

तब गुरुजी ने अपने शिष्यों को बताया -  यहां पर 5 प्रेत आत्मा है. यह सुनकर सभी शिष्य डर के मारे कांपने लगे. तब गुरुजी ने कहा शिष्यों डरो मत. तुम सभी इनसे ज्यादा शक्तिशाली हो क्योंकि तुम सब लोग कर्मों से महान हो और यह सभी आज अपनी पिछली करने का भोग कर्म भोग रहे हैं. आज इस समय में इन लोगों से दुर्लभ और कोई नहीं है.

तब शिष्यों ने बड़े ही आश्चर्य से गुरु से पूछा इन्होंने ऐसा क्या किया है?गुरुजी

तब पहली प्रेत आत्मा ने जवाब देते हुए कहा वह पिछले जन्म में ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ था और एक ब्राह्मण था भिक्षा मांगता था परंतु उस भिक्षा को भोग विलास में खर्च कर देता था.

दूसरे प्रेतात्मा ने जवाब देते हुए कहा मैं क्षत्रिय था और अपनी शक्ति का दुरुपयोग निर्बल गरीब और लाचार ऊपर किया करता था.

तीसरे प्रेत आत्मा ने जवाब दिया मैं बनिया था बस हमेशा अपने खुद के फायदे के बारे में सोचता रहता था. हमेशा ही मिलावट करके सामान बेचा करता था जिस कारण कई लोग मारे गए थे.


चौथे प्रेतात्मा ने जवाब दिया मैं छुद्र था बहुत ही आलसी था जिम्मेदारी से हमेशा भागता था अपने माता-पिता को पीटता था और दिन रात नशा किया करता था.

अंत में पांच में प्रेत आत्मा ने जवाब देते हुए कहा कि मैं एक लेखक था अश्लील कथाएं लिखता था मैंने समाज को वासना का पाठ सिखाया था.

इस तरह से पांचो पापी अपने पापों का भोग कर रहे है.

सभी प्रेत आत्माओं ने हाथ जोड़कर गुरु से निवेदन किया. हे गुरु आप गुरु हैं आप दुनिया वालों को समझाइए की बुराई का रास्ता क्षणिक सुख देता है परंतु इसका दंड कई जन्मों तक अंधकार में भोगना पड़ता है.




शिक्षा
मनुष्य को अपने किए का फल भोगना ही पड़ता है. फिर वह चाहे किसी भी जन्म में हो. कहा जाता है कि जिस प्रकार ईश्वर होते हैं उसी प्रकार भूत भी है लेकिन वह जितना दुर्लभ होता है उतना और कोई दुर्लभ नहीं होता. जितना कष्ट झेलते हैं उतना कोई और नहीं खेलता वह अपने किए की सजा पाते हैं. क्षणभर की विलासिता के कारण कई जन्मों तक उनको भोगना पड़ता है. एक मनुष्य कितना भी क्यों ना इतराए नियति उसके कर्म के हिसाब बराबर रखती है. इसीलिए हमेशा सदाचार के मार्ग पर चलें अगर आप से कोई गलती हुई हो तो उसे सुधारें.


कहानी आपको कैसी लगी कमेंट अवश्य करें.